Wednesday, December 9, 2009

मेनका गाँधी / वरुण गाँधी जवाब दे : शंख पर पर्तिबंध क्या सही ?????

A vegan friend recently bought a watch whose dark face had a purple sheen. When I informed her that it was made of mother of pearl, she promptly exchanged it.

It is ironic to consider how mother of pearl, devised for the mollusk's protection , has instead become the reason for this sea-creature's widescale destruction.

There are thousands of varieties of mollusks. They are sea creatures of the most interesting kind. Found in a dizzying range of colours and sizes, all of them have shells as protective covering, some of them are one legged and hop, some lie attached to stones , some move in tandem with the waves. All of them are live creatures that breathe , eat , mate and feel pain. Some of them are unlucky enough to produce a substance called nacre and this ensures that they are killed in their millions to produce “ organic jewellery” decorative items made from a living creature. In order to get this nacre, the creature inside the shell is ripped out with a knife and its pieces are sold as fertilizer. The inside of the shell is then treated with far more respect. It is carefully taken out and made into pretty baubles and boxes.

Nacre is a smooth iridescent substance secreted by mollusks and continuously deposited onto the inner surface of their shells to coat and protect their bodies. The layers of nacre smooth the shell surface and help defend the soft tissues of the mollusk’s skin against parasites, bacterial infection and reduce irritation from organic material which may drift into the shell while it is slightly open for feeding or respiration. This iridescent layer is commonly known as mother of pearl. Irregularities often form in the mother of pearl as a result of irritation. If the irritation is extensive, the mollusk will form a large bump, prized in the human world as a pearl. Nacre is called "mother of pearl" because it is literally the "mother", or creator of pearls.

Mother of pearl is made of plates of aragonite, a material secreted by the mollusk which contains calcium carbonate and conchiolin, a natural protein. These plates are brittle, so the mollusk secretes silk between the plates making them capable of withstanding hard use. The shimmer of Mother of pearl comes from the transparent crystals of calcium carbonate. When they catch the light, these crystals, like a prism, emit iridescent hues.

Australia cultures white Mother of Pearl shells from the pinctada maxima oyster. Black Mother of Pearl shells (Pinctada margaritifera oyster ) are cultured in the waters round Tahiti and Cook Island. From China and Japan to Scotland, Venezuela and California, from Bahrain to Indonesia , millions of helpless creatures lost their lives in order to become cheap bracelets. Mother of pearl is obtained by killing oysters, freshwater mussels and abalones. Also widely used for pearl buttons during the 20th century, is the shell of the great green turban snail. In East Asia, the technique of decorating objects with mother of pearl began during the Tang Dynasty (618-907) in China. In Korea, known as Najeon Chilgi , the art of making boxes by inlaying them with mother of pearl and then glazing them with lacquer became a sign of status around the arrival of the Goryeo Dynasty (918-1392.

Mother of pearl is used for buttons, cheap jewellery, tiles, laminates, inlays and bric a brac, watch faces, knives, guns ,musical instruments. At the beginning of the 19th century almost 1,500 tonnes of the world’s oyster shell production was used for the button-making industry. Mother of pearl are cut into shapes and laminated to a ceramic tile or marble base. Mother of pearl sheets are used on interior floors, exterior and interior walls, countertops, doors and ceilings.

Millions of cultured pearls are made by killing millions of non pearl mollusks, cutting up the nacre and introducing it manually into the skin of an oyster, enough to irritate it into producing a pearl. The oyster is then killed after the pearl is made. The commercial harvest of freshwater mussels is a multi-million dollar industry in North America where shells are harvested and exported to Asia where they are made into nuclei for insertion into oysters to create cultured pearls. Most lagoons have no natural nacreous mussels and oysters, pearl mollusks left so they are being grown artificially in the same way as pigs /cows/goats are grown for meat.

While buttons are now on the decline , new uses are being found for mother of pearl. Recent experiments are being done to find out if mother of pearl can replace bones. Cosmetic skin creams extract the flesh from the nacreous mollusks, grind and dry it and sell it as moisturizers.

What is the justification of torturing and killing magnificent sea creatures for foolish ornaments? There is nothing attractive about objects created from mother of pearl. It is the mother of all insensitivity and poor taste to put dried pus and skin, which is all that nacre, is on show.

‘शंख’ के लिए होगा शंखनाद


नरेश कादयान ने कहा की ये पर्तिबंध हरियाणा सरकार ने नहीं जबकि अटल बिहारी वाजपेयी कीसरकार में ये हुआ था, क़ानून अपना काम करेगा, दुर्लभ शंख जो पर्तिबंदित हो, रखना ही गलत - नरेश कादयान शिकायतकर्ता -09813010595, 9313312099
शंख को प्रतिबंधित सूची से निकालने की मांग
गीता जयंती के पावन अवसर पर कुरुक्षेत्र में बह्मïसरोवर के तट पर वन्य प्राणी जीव—जंतु विभाग की ओर से शंख व कोडिय़ां विक्रेताओं के खिलाफ कार्रवाई की निंदा की है। प्रभुराम कार्य संपर्क प्रमुख अजीत कुमार ने बताया कि शंख हमारी धार्मिक परंपराओं में शामिल है। प्रेस को जारी विज्ञप्ति में सुनील कुमार ने मांग की कि सरकार जीव जंतु विभाग के अधिकारियों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें। उनकी यह भी मांग है कि शंख को प्रतिबंधित सूचि से निकाला जाना चाहिए।
क़ानून अपना काम करेगा, दुर्लभ शंख रखना जो पर्तिबंदित हो, रखना ही गलत - नरेश कादयान शिकायतकर्ता
शंख बजाया तो जेलयात्रा का चांस!
नरेश कादयान द्वारा शिकायत दर्ज करवा दी तथा जागरूकता अभियान का शंखनाद कुरुक्षेत्रसे ही किया . मंदिर में शंख बजने पर कोई पर्तिबंध नहीं.

शंख की बिक्री पर प्रतिबंध, हिंदुत्व भावनाओं पर चोट

शंख के बिना हिंदू धर्म में पूजा अधूरी
Danik Bhasker News

शंख पर प्रतिबंध तुगलकी फरमान : संघ

भारतीय संस्कृति के प्रतीकों में से एक शंख पर प्रतिबंध लगाए जाने पर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपना विरोध जताया है। उनका कहना है कि यह एक तुगलकी फरमान से ज्यादा कुछ नहंी है।

इस संबंध में संघ के प्रचार विभाग की बैठक नगर प्रमुख अजय शर्मा की अध्यक्षता में हुई। बैठक में अजय ने कहा कि स्वतंत्र भारत में भी मुगलों और अंग्रेजों की तरह हिंदू जनता की धार्मिक एवं सामाजिक परंपराओं का दमन जोर पकड़ता जा रहा है। कभी यात्राओं, सम्मेलनों व पूजा पद्धति के विरोध होते है, तो वर्तमान में शंख पर प्रतिबंध एक ऐसा ही तुगलकी फरमान है। हरियाणा की कांग्रेस सरकार ने इसे वन्य प्राणी संरक्षण विभाग द्वारा जारी करवाकर अपने छद्म धर्मनिरपेक्ष स्वरूप का एक बार फिर से हिंदू भावनाओं को दबाने का प्रयास किया है। उन्होंने कहा कि यह हिंदुओं की मान्यताओं के ऊपर एक काले कानून की तरह थोपा गया है क्योंकि सनातन मान्यताओं में शंख के बिना कोई भी धार्मिक कार्य एवं हवन यज्ञ अधूरा ही रहता है। हिंदू मान्यताओं में शंख ध्वनि से प्रेत बाधाओं इत्यादि से भी छुटकारा मिलता है। उन्होंने कहा कि जिस धर्म नगरी कुरुक्षेत्र से शंख पर प्रतिबंध शुरू हुआ वहां से महाभारत की लड़ाई का शंखनाद भगवान श्री कृष्ण ने अपने पांचजन्य शंख से ही किया था। सतयुग, द्वापर एवं वर्तमान युग में भी हर धार्मिक कार्य एवं आयोजन में भी शंख ध्वनि से ही आरंभ होते है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा इसे राष्ट्रीय संपत्ति घोषित किए जाने के बाद मंदिरों में काम करने वाला कोई भी ब्राह्मण इसे घर या मंदिर में उपयोग तो दूर की बात इसे अपने पास रख भी नहीं सकेगा।

बैठक में सरकार के फैसले का कड़ा विरोध करते हुए हरियाणा सरकार को चेताया गया कि यदि इस कानून को वापिस नहीं लिया गया तो सरकार के इस कुकृत्य का व्यापक विरोध जन आंदोलन का रूप धारण कर लेगा। बैठक में राजेश गुप्ता, पंकज रत्ती, विकास खेड़ा, गगन शर्मा, हितेश, विकास कालड़ा, संजय शर्मा आदि ने भी अपने विचार रखे। इन सभी ने सरकार से मांग की कि शंख पर प्रतिबंध वाले काले कानून को वापस ले। साथ ही चेतावनी भी दी कि यदि प्रतिबंध वापस नहीं लिया गया तो हिंदू जनमानस सड़कों पर उतर आएगा




कुरुक्षेत्र, जागरण संवाद केंद्र : श्री ब्राह्मण एवं तीर्थाेद्धार सभा ने माग की है कि गीता जयंती के अवसर पर आयोजित क्राफ्ट मेले में शख बेचने के आरोप में दुकानदार राजकुमार वर्मा के खिलाफ दर्ज मुकदमा तुरंत रद किया जाए। पीड़ित दुकानदार को सरकार की ओर से उचित मुआवजा दिया जाए। सभा के प्रधान जयनारायण शर्मा ने माग की कि शख बेचने वाले दुकानदार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कराने वाले एनजीओ के पदाधिकारी नरेश कादियान तथा वन्य जीव संरक्षण विभाग के इस्पेक्टर के खिलाफ धार्मिक उन्माद फैलाने तथा झूठा मुकदमा दर्ज कराने के आरोप में केस दर्ज किया जाए। उन्होंने यह भी माग की कि इस मामले में बिना कानून का अध्ययन किए दुकानदार के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने वाले पुलिस अधिकारियों के विरुद्ध भी सख्त कार्रवाई की जाए।

गीता जयंती के अवसर पर आयोजित क्राफ्ट मेले में राजकुमार वर्मा नामक दुकानदार को मंदिरों में बजाए जाने वाले शख बेचने के आरोप में गिरफ्तार किया गया था। थानेसर के विधायक एवं इनेलो प्रदेशाध्यक्ष अशोक अरोड़ा ने शख पर प्रतिबंध लगाने के मामले को विधानसभा मे उठाने की चेतावनी दी थी। उसके बाद अब वन मंडल अधिकारी नरेश कुमार रगा ने समाचार पत्रों में बयान देकर यह स्पष्ट किया है कि मंदिरों में बजाए जाने वाले शख पर कोई प्रतिबंध नहीं तथा यह शख प्रतिबंधित शख की प्रजातियों में नहीं आते।

वनमंडल अधिकारी नरेश कुमार रगा ने कहा कि मंदिरों व पूजा स्थलों पर प्रयोग किए जाने वाले शख पर किसी भी प्रकार की कोई पाबंदी नहीं है। दक्षिणमुखी शख व वह शख जो मंदिरों व पूजा स्थलों में आमतौर पर प्रयोग में लाए जाते हैं, पर किसी भी प्रकार का कोई प्रतिबंध नहीं है। वन विभाग ने जिस शख व सिप्पी, कोड़ी पर प्रतिबंध लगाया है, वह मंदिरों व पूजा स्थलों में प्रयोग में नहीं लाया जाता। रगा ने स्पष्ट किया कि शख के प्रतिबंध संबंधी समाचारों को लेकर पिछले कई दिनों से मात्र भ्रान्ति है। पूजा के शखों पर कोई पाबंदी नहीं है।
शख पर लगाई गई पाबंदी के विरोध में धार्मिक एवं सामाजिक संस्थाओं का एकजुट होना शुरू हो गया है। शख पाबंदी के विरोध में बैठकें आयोजित की जा रही हैं। ब्राह्मण एवं पुरोहित समाज ने बैठक में एक स्वर से शख पाबंदी के विरोध का निर्णय लिया तथा सरकार द्वारा शख पर लगाई पाबंदी की कडे़ शब्दों मे निंदा की।

तीर्थ पुरोहित विनोद पचौली ने कहा कि यदि किसी राष्ट्र व समाज की संस्कृति टूटती है तो उस राष्ट्र व समाज का अस्तित्व भी संकट में पड़ जाता है। उन्होंने कहा कि शख का धार्मिक व अध्यात्मिक महत्व है। देवी-देवताओं व ऋषि-मुनियों ने शख ध्वनि से प्रभु का आह्वान किया है। शख पर पाबंदी सनातन संस्कृति पर हमला है। सनातन धर्म महावीर दल के अध्यक्ष वेद प्रकाश शर्मा ने कहा कि हिंदू संस्कृति में शख ध्वनि का बहुत महत्व है। सनातन धर्म प्रेमी कभी भी शख पाबंदी के काले कानून को सहन नहीं कर सकते। आशीष चक्रपाणी ने कहा कि जब जीव अपना असली स्वरूप धारण कर चला जाता है तब ही शख बजाने योग्य होता है। उन्होंने कहा कि प्राचीन काल में सीपिया व कौड़िया गहनों में प्रयोग होती थीं तथा व्यापार भी कौडि़यों के लेन-देन से होता था। बैठक में सोमदत मोदगिल, सुरेद्र व्यास सहित अनेक धार्मिक संस्थाओं के प्रतिनिधियों ने शख पाबंदी के लिए सरकार की निंदा की।

No comments:

Post a Comment